मोक्षपर्यंत ध्यानाभ्यास

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MS03 वेद-दर्शन-योग || चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां और संतवाणी से मिलान

MS03  वेद-दर्शन-योग  

    प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची की तीसरी पुस्तक "वेद-दर्शन-योग" है । इस पुस्तक में संत सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां लिखकर संतवाणी से उनका मिलान करके प्रमाणित किया है कि संतमत और वेदमत में भिन्नता नही एकता है इस पुस्तक का पाठ करके संतों के मूल विचार और वेदों के मूल विचार के साधनात्मक अनुभव से आप परिचित होगें तथा एकता और भाइचारा के प्रति आकर्षित होंगे। आइये इस पुस्तक का दर्शन करें-

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वेद-दर्शन-योग की महत्वपूर्ण बातें

    प्रभु प्रेमियों ! 'वेद-दर्शन-योग' यह महर्षिजी की नौवीं कृति है। इसमें चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां लिखकर संतवाणी से उनका मिलान किया गया है। इसका प्रथम प्रकाशन 1956 ई0 में हुआ था। आबाल ब्रह्मचारी बाबा ने प्रव्रजित होकर लगातार ५२ वर्षों से सन्त साधना के माध्यम से जिस सत्य की अपरोक्षानुभूति की है , उसी का प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है । इतने लम्बे अरसे से वेद , उपनिषद् एवं सन्तवाणियों का अध्ययन तथा मनन एवं उनके अन्तर्निहित निर्दिष्ट साधनाओं का अभ्यास करते हुए परमपूज्य सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मानव मात्र सदाचार - समन्वित हो दृष्टियोग और शब्दयोग ( नादानुसंधान ) अर्थात् विन्दुध्यान और नादध्यान के द्वारा ब्रह्म - ज्योति और ब्रह्मनाद की उपलब्धि कर परम प्रभु सर्वेश्वर को उपलब्ध कर सकता है । इसी विषय का स्पष्टीकरण उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ में किया है ।          साथ ही उन्होंने यह भी समझाने की भरपूर चेष्टा की है कि प्राचीन कालिक मुनि - ऋषियों से लेकर अर्वाचीन साधु - संतों तक की अध्यात्म - साधना पद्धति एक है । वेद - उपनिषदादि में वर्णित अध्यात्म- ज्ञान और कबीर , नानक , तुलसी प्रभृति आधुनिक सन्तों के व्यवहृत आत्मज्ञान में ऐक्य या पार्थक्य है ? - इस भ्रम के निवारणार्थ ' वेद - दर्शन - योग ' का प्रणयन किया गया है । अथवा सीधे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त ऐक्य वा पार्थक्य के असमंजस को मिटाकर पूर्ण सामंजस्य की स्थापना करती है । 



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सद्गुरु महर्षि मँहीँ साहित्य सुमनावली


     MS04 . विनय-पत्रिका-सार सटीक- गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ 'विनय-पत्रिका' का सार है, जिस पर महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने सटीक टिप्पणी या व्याख्या लिखी है। यह पुस्तक महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची की चौथी पुस्तक है। यह 1931 ई0 में भागलपुर के युनाइटेड प्रेस में छपी थी। इसमें गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज रचित ‘विनय-पत्रिका’ के कुछ पदों की सरल व्याख्या की गई है। बहुत ही अच्छी और सारगर्भित पुस्तक है। यह पुस्तक गोस्वामी तुलसीदास जी की साधना पद्धति और उनकी साधनात्मक गति का परिचयात्मक पुस्तिका है। 'विनय-पत्रिका' में भगवान श्री राम के प्रति तुलसीदास जी की गहरी भक्ति, विनम्रता (दास भाव), और पूर्ण समर्पण का भाव है, जिसे महर्षि जी ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सरल भावार्थ के साथ प्रस्तुत किया है। इस सार-सटीक का उद्देश्य पाठकों को गोस्वामी जी महाराज की अंतिम गति (मोक्ष की स्थिति) और उस तक पहुँचने के मार्ग को समझाना है, ताकि मनुष्य परम कल्याण प्राप्त कर सके।   इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए   👉 यहां दबाएंसद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए  👉  यहां दवाएं

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MS03 वेद-दर्शन-योग || चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां और संतवाणी से मिलान MS03  वेद-दर्शन-योग  ||  चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां और संतवाणी से मिलान Reviewed by सत्संग ध्यान on नवंबर 10, 2021 Rating: 5

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