प्रभु प्रेमियों ! लाल दास जी महाराज की ओर से 'महर्षि मेंही शब्दकोश' पुस्तक का लिखना संतमत-साहित्य जगत में एक अनुपम भेंट है। हमारे साहित्य भंडार में नित्य उपयोगी शब्दों के सरलार्थ की कोई पुस्तक नहीं थी । इस पुस्तक के आ जाने से उस अभाव की पूर्ति हो गई है ।इसके लिए हम संतमतानुयाई पूज्य छोटेलाल बाबा या पूज्य लालदास महाराज का दिल से आभार प्रकट करते हैं और उनसे ऐसे ही अन्य आशीर्वादों की कामना करते हैं ।
संतमत सत्संग की अनुपम कड़ी और गुरुदेव के प्रिय शिष्य
प्रभु प्रेमियों संतमत को सरल भाषा में समझने की जब बात होती है तो पूज्यपाद लालदास जी महाराज का साहित्य का जिन्होंने पाठ किया है वह हृदय से कहते हैं कि पूज्य पाद लाल दास जी महाराज के साहित्य को पढ़े बिना संतमत के संपूर्ण विषयों का ज्ञान होना कठिन है, इनकी पुस्तकों की जो सरल भाषा है वह हृदय को छूती है और सहज ही बुद्धि में उतर जाती है. इन्हीं सब बातों को विशेष रूप से देखते हुए पूज्यपाद शाही स्वामी जी महाराज जब इनकी प्रथम पुस्तक "सद्गुरु की सार शिक्षा" प्रकाशित हुई थी तो उसमें इनकी सहज हृदयस्थ वाणी थी-
"ये केवल डिग्री प्राप्त विद्वान् नहीं , बस्कि यथार्थ विद्वान् हैं । ये परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज ( महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ) के प्रिय सेवकों में से हैं । इनपर परमाराध्य को बहुत बड़ी कृपा है । इन्होंने जो यह ' सद्गुरु की सार शिक्षा ' नाम्नी पुस्तक लिखी है , परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज की कृपा की प्रथम किरण है । इनके द्वारा इस प्रकार की बहुत - सी पुस्तकें लिखी जाएंगी , जिनसे लोग परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज की विशेष कृपा के दर्शन करेंगे । परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज आज स्थूल शरीर में नहीं हैं , अन्यथा वे इस पुस्तक को अपने कर - कमलों में लेकर जो प्रसन्नता व्यक्त करते , सब लोग उसके प्रत्यक्ष दर्शन करते."
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज की कृपा किस प्रकार बरसती थी इसका कुछ नमूना इनके ही द्वारा लिखित पुस्तक "गुरुदेव के मधुर संस्मरण" के निम्नलिखित प्रसंगों से मिलता है . यहां केवल नमूना के लिए दो-तीन प्रसंग उद्धृत किए गए हैं . ऐसे बहुत सारे प्रसंग इनकी पुस्तकों में प्रकाशित है जिसे आप पुस्तक खरीद कर पढ़ सकते हैं
गुरुदेव के मधुर संस्मरण
प्रसंग ८८. ' जा - ब - जा ' का अर्थ जानते हो :
श्रीगोपाल दासजी ' दीन ' पूज्यपाद बाबा श्रीशाही स्वामीजी महाराज के सेवक थे । इन्होंने एक बार गुरुदेव के सामने गुरुदेव - रचित एक पद्य गाया । उस पद्य की प्रथम पंक्ति है- ' अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं , मन पता पाता नहीं । ' इस पद्य की एक कड़ी है- ' खोजते फिरते बहुत - से , इस जगत में जा - ब - जा । ' पद्य का गायन सुनकर गुरुदेव बड़े प्रसन्न हुए और श्रीगोपाल दासजी से पूछा कि ' जा - ब - जा ' का अर्थ जानते हो ? श्रीगोपाल दासजी ने कहा कि जी हाँ । ' जा - ब - जा ' फारसी शब्द है , इसका अर्थ होता है - जहाँ - तहाँ , जगह - जगह । गुरुदेव ने पूछा कि यह अर्थ तुम्हें किसने बतलाया ? श्रीगोपाल दासजी ने कहा कि छोटेलालजी ने बतलाया था , वे हमलोगों को सिखाते हैं । गुरुदेव बोले कि ठीक ही बतलाया है ।
प्रसंग २३५. ' कुष्माण्ड ' , ' उत्कोच ' और ' वनज ' के अर्थ :
एक दिन गुरुदेव ने मुझसे पूछा कि ' कुष्माण्ड ' का अर्थ क्या होता है ? मैंने हाथ जोड़कर कहा कि इसका अर्थ होता है - कोहड़ा , कुम्हड़ा । फिर उन्होंने पूछा कि ' उत्कोच ' का अर्थ क्या होता है ? मैंने कहा कि इसका अर्थ होता है - घूस । इसपर गुरुदेव बोले कि बिना घूस दिये किसी से कोई काम कराना संभव नहीं है । चाहे सेवा और आदर - सत्कार के रूप में घूस दो , चाहे रुपये - पैसे के रूप में या और किसी रूप में । दूसरे किसी दिन गुरुदेव ने पूछा कि ' वनज ' का अर्थ क्या होता है ? मैंने कहा कि कमल । उन्होंने कहा कि कैसे ? मैंने कहा कि वन ज वनज अर्थात् जल में जनमा हुआ - कमल । फिर मैंने कहा कि ' वनवाहन ' एक शब्द है , जिसका अर्थ होता है - जलयान , नौका । इसके बाद गुरुदेव कुछ नहीं बोले ।
प्रसंग २४१ . ' घोर ' , ' सेवायत ' और ' नखत ' के अर्थ :
एक दिन गुरुदेव ने संत चरणदासजी के एक पद्य की आरम्भिक यह पंक्ति ' जब से अनहद घोर सुनी ' सुनायी और एक आश्रमवासी से पूछा कि यहाँ ' घोर ' शब्द का अर्थ क्या है ? उन आश्रमवासी ने कहा कि यहाँ ' घोर ' का अर्थ है बहुत अधिक । गुरुदेव ने कहा कि नहीं , यहाँ ऐसा अर्थ नहीं है । फिर उन्होंने मुझसे पूछा । मैंने कहा कि यहाँ ' घोर ' का अर्थ है - शब्द , ध्वनि । गुरुदेव बोले कि ठीक है , यहाँ यही अर्थ होगा । दूसरे किसी दिन गुरुदेव ने कई आश्रमवासियों से ' सेवायत ' शब्द का अर्थ पूछा । सबने कहा कि इसका अर्थ होता है - सेवा करनेवाला , सेवक । अंत में उन्होंने मुझे बुलाकर पूछा । मैंने नम्रतापूर्वक कहा कि ' सेवायत ' का शुद्ध रूप होता है- ' सेवायत्त ' सेवा+आयत्त= सेवायत्त ' आयत्त ' का अर्थ होता है - अधीन । इसलिए ' सेवायत्त ' का शाब्दिक अर्थ हुआ - सेवा कर्म जिसके अधीन हो अर्थात् सेवक । इसपर गुरुदेव बोले कि ठीक कहा । तीसरे किसी दिन गुरुदेव ने मुझसे पूछा कि ' नखत का अर्थ क्या होता है ? मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि इसका अर्थ होता है - नक्षत्र , तारा । फिर मैंने कहा कि हुजूर की ' पदावली ' में भी ' नखत ' शब्द आया है ; जैसे ' नखतेन्दु भानुमय गुरु रूप पावे । ' नखत इन्दु नखतेन्दु अर्थात् तारा और चन्द्रमा गुरुदेव बोले कि हाँ , ठीक है । शब्दों के अर्थ गुरुदेव प्रायः पूज्य श्रीसंतसेवी बाबा और मुझसे पूछा करते थे । ∆
"महर्षि मेंहीं-शब्दकोश" पुस्तक में क्या है?
प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेंहीं - शब्दकोश ' में अधिकांश शब्द सद्गुरु पूज्यपाद महर्षि मँहीँ परमहंसजी महाराज की पुस्तकों से लिये गये हैं । इस शब्दकोश की भाषा बड़ी सरल रखी गयी है । इसके निर्माण में संस्कृत , हिन्दी , अँगरेजी और उर्दू के अनेक शब्दकोशों की सहायता भी ली गयी है । इस कोश में कोष्ठक में जिस शब्द का भाषा - निर्देश नहीं किया गया है , उसे हिन्दी का शब्द समझना चाहिए । प्रस्तुत शब्दकोश के शब्दों को अक्षरों और मात्राओं के क्रम में सजाया गया है।
हिन्दी भाषा में संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की और अँगरेजी के भी शब्द आये हुए हैं । शब्द के व्याकरणिक परिचय भी बताया गया है। वह किस भाषा का है, वह स्त्रीलिंग है या पुँल्लिंग, वह विशेषण है या क्रियाविशेषण, वह सकर्मक क्रिया है या अकर्मक क्रिया और वह तत्सम है या तद्भव इनकी कुछ-न-कुछ जानकारी दी गई है।
उपरोक्त बातों से संत-साहित्य प्रेमियों को अपूर्व लाभ होगा इसमें कोई संदेह नहीं है । अधिक क्या कहा जाए, पुस्तक आपके सामने नीचे प्रस्तुत है आप स्वयं देखें और विचार करके इससे उपरोक्त लाभ ले ं ।
प्रभु प्रेमियों ! इस पुस्तक के बारे में इतनी अच्छी जानकारी प्राप्त करने के बाद हमें विश्वास है कि आप इस पुस्तक को अवश्य खरीद कर आपने मोक्ष मार्ग के अनेक कठिनाईयों को दूर करने वाला एक सबल सहायक प्राप्त करेंगे. इस बात की जानकारी अपने इष्ट मित्रों को भी दे दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें और आप इस ब्लॉग वेबसाइट को अवश्य सब्सक्राइब करें. जिससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना निशुल्क मिलती रहे और आप मोक्ष मार्ग पर होने वाले विभिन्न तरह के परेशानियों को दूर करने में एक और सहायक प्राप्त कर सके. नीचे के वीडियो में इस पुस्तक के बारे में और कुछ जानकारी दी गई है . उसे भी अवश्य देख लें. फिर मिलते हैं दूसरे प्रसंग के दूसरे पोस्ट में . जय गुरु महाराज
LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ || मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद, शान्तिपूर्ण जीवन-यापन की शिक्षायुक्त १९७ कथाओं का संकलन वाली इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहाँ दवाएँ.
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिएयहां दवाएं।
---×---
LS60 महर्षि मेंहीं-शब्दकोश || संतमत सत्संग की नित्योपयोगी विषयों की 6621 शब्दों के सरलार्थ की पुस्तक
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
जुलाई 15, 2022
Rating: 5
कोई टिप्पणी नहीं:
जय गुरु महाराज कृपया इस ब्लॉग के मर्यादा या मैटर के अनुसार ही टिप्पणी करेंगे, तो उसमें आपका बड़प्पन होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
जय गुरु महाराज कृपया इस ब्लॉग के मर्यादा या मैटर के अनुसार ही टिप्पणी करेंगे, तो उसमें आपका बड़प्पन होगा।