संतमत - दर्शन || Santmat - Darshan
प्रभु प्रेमियों ! परम पूज्य गुरुदेव की तेरह कृतियों में एक का नाम है '
महर्षि मँहीँ पदावली ' । इसमें उनके १४२ पद्यों का संग्रह है । इनमें से प्रथम पद्य की संज्ञा ' ईश - स्तुति ' है । सन्तमत में दीक्षित प्रायः समस्त सत्संगप्रेमी नित प्रातः निष्ठापूर्वक इसका पाठ किया करते हैं । इसमें क्लिष्ट तत्सम शब्दों के रहने के कारण अधिकांश जन इसके अर्थ से अनभिज्ञ रहते थे ।
श्रीछोटेलाल मंडलजी * , बी ० ए ० ( हिन्दी ऑनर्स ) ने इसकी अर्थ सह व्याख्या करके जन साधारण का बहुत बड़ा उपकार किया है ।
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संतमत दर्शन |
संतमत - दर्शन की महत्वपूर्ण बातें
प्रभु प्रेमियों ! जीव में सुख पाने की कामना स्वाभाविक ही है । धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि जीव अपने अंशी ईश्वर से मिलकर ही पूर्ण सुखी हो सकता है । संसार के समस्त वैभवों के बीच रहते हुए भी ईश्वर से युक्त त्रय तापों से संतप्त होता रहता है । ईश्वर स्वरूप को ठीक से समझे बिना जीवनभर सुख शान्ति के लिए ईश्वर भक्ति के नाम पर किया जानेवाला सारा श्रम निष्फल ही चला जाता है ।
नावं न जानै गाँव का , कहो कहाँ को जाँव । चलते चलते जुग गया , पाँव कोस पर गाँव ॥ (संत कबीर साहब)
पदावली में जिन विषयों का वर्णन हुआ है , वे इस प्रकार हैं- ईश्वर का स्वरूप , जीव , माया , प्रकृति , सृष्टिक्रम , आदिनाद , संतमत के सिद्धान्त , संतमत की साधना - पद्धतियाँ ( मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टियोग तथा शब्दयोग ) , साधना की अनुभूतियाँ , साधना के संयम , गुरु का महत्त्व , सद्गुरु के लक्षण , सद्गुरु के प्रति शिष्य के कर्त्तव्य , संत , सत्संग , सत्संग के प्रकार , विषय भक्ति , भक्ति के प्रकार , ब्रह्मरूप , गुरु - रूप , ध्यानाभ्यास का महत्त्व , सुख की दुःखरूपता , वैराग्य भावना , जीवन तथा जगत् की नश्वरता , जीवन जीने की कला , सांसारिक लोगों की स्वार्थपरता आदि - आदि ।
' संतमत - दर्शन ' नाम्नी इस प्रस्तुत पुस्तक में पदावली के प्रथम पद्य ( " सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर , औरु अक्षर पार में । " ) की व्याख्या पदावली के ही विचारों के प्रकाश में करने का प्रयत्न किया गया है । ईश्वर या परमात्मा का स्वरूप क्या है? इस पुस्तक में इस संबंध में अच्छी जानकारी दी गयी है । गागर में सागर की भाँति ईश्वर स्वरूप से संबंधित सारी बातें लिखी गयी हैं ।
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* इस पुस्तक के लेखक पहले अपना नाम ' छोटेलाल मंडल ' ही लिखा करते थे , बाद में ' छोटेलाल दास ' लिखने लगे । --प्रकाशक
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