प्रभु प्रेमियों ! ' सत्संग - योग ' की भूमिका में सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज शुरू में ही लिखते हैं - "सत्संग द्वारा श्रवण - मनन से मोक्षधर्म - सम्बन्धी मेरी जानकारी जैसी है , उसका ही वर्णन चौथे भाग में मैंने किया है । परमात्मा , ब्रह्म , ईश्वर , जीव , प्रकृति , माया , बन्ध मोक्षधर्म वा सन्तमत की उपयोगिता , परमात्म भक्ति और अन्तर - साधन का सारांश साफ - साफ समझ में आ जाय इस भाग के लिखने का हेतु यही है । '
मोक्ष संबंधी महत्वपूर्ण सभी बातों सहित है मोक्ष-दर्शन
मोक्ष - संबंधी पर्याप्त ज्ञान के हेतु मैंने वेदार्थ , उपनिषद् , संतवाणी तथा अन्यान्य सद्ग्रंथों का अध्ययन किया । श्रीसद्गुरु महाराजजी का संग तो था ही , इसके अतिरिक्त यत्र - तत्र भ्रमण करके मैंने अन्य महात्माओं का भी सत्संग किया । वर्णित सद्ग्रंथों में से मोक्ष - विषयक सद्ज्ञान का संग्रह कर उसे तीन भागों में विभक्त कर दिया ।
सत्संग , अध्ययन और वर्षों के साधनाभ्यास की अनुभूतियों से जो कुछ मेरी जानकारी में आया - जैसा कुछ मुझे बोध हुआ , उन सबको अपने वाक्यों में गठित कर मैंने चौथे भाग का निर्माण किया । पश्चात् चारो को मिलाकर उस बृहत् पुस्तक का नाम मैंने ' सत्संग योग ' रखा । ' सत्संग - योग ' के चौथे भाग में यत्र - तत्र प्रमाण स्वरूप कुछ संतों की वाणियाँ भी दी गयी हैं । ईश्वर , जीव , जगत् , जीव का बंध और मोक्ष , मोक्ष- मार्ग पर चलने का सहारा और उसकी युक्ति प्रभृति मोक्ष - विषयक जिन बातों का ज्ञान मनुष्य को अनिवार्य रूप से होना चाहिए , वह समस्त ज्ञान इस चौथे भाग में है ।
कल्याण - पाद महर्षिजी ने वेद - काल से लेकर आजतक के मोक्ष - दर्शन को चार प्रकोष्ठों में प्रतिष्ठित किया है और उसका नाम रखा है- ' सत्संग - योग , चारो भाग ' और उनके अनुभव ज्ञान की वाणियाँ गम्भीर सरलता में अभिव्यक्त होकर ' मोक्ष - दर्शन ' नाम धारण कर आज मुमुक्षुजनों में अमृत - वितरण के लिए प्रस्तुत है ।
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MS09 . ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर भक्ति || परमात्मा को प्राप्त करने के लिए ज्ञान-योग और भक्ति का समन्वय परमावश्यक है।. इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए
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